हिंदी एक सरल भाषा है, … इस भाषा के माध्यम से हम बड़ी सरलता से दसों दिशाओं को,परम्पराओं को समझा पाते हैं - यह हमारे देश का गौरव है। इस गौरव को बनाये रखने के लिए कई लोग सतत प्रयास में हैं, इसकी महत्ता समझकर इसे बाल्यकाल से पाठ्य पुस्तक के माध्यम से नीव की ईंट में परिवर्तित करना चाहिए।
इसी उद्देश्य से यह ब्लॉग बना है, और उन रचनाओं को मैं आप तक ला रही हूँ, जिसे शिक्षा का आधार बनाना चाहिए -
वन्दे मातरम्
'वन्दे मातरम'
हे शब्द समूह ! तुम्हें किसी जड़ मान्यता के भाष्य की आवश्यकता नहीं है।
तुम स्वयंसिद्ध हो प्रात: उगते सूर्य को देख उपजे आह्लाद, सम्मान और विनय की तरह।
तुम स्वयंसिद्ध हो हमारे जीवन को ले धमनियों में दौड़ते रक्त प्रवाह की तरह।
तुम स्वयंसिद्ध हो हमारे मन में उमड़ते पुरनियों के प्रति सम्मान की तरह।
हमारी आगामी पीढ़ियाँ भी तुम्हें साँसों में ऐसे ही घुलाए रखेंगी - जीवन दुलार की तरह।
हमारी पीढ़ियाँ कृतघ्न नहीं होंगी।
उन्हें मूर्तिपूजक होने पर गर्व रहेगा
हे शब्द समूह, हम उन्हें ऐसे संस्कार देंगे।
वन्दे मातरम।
रच दूंगी मै संसार निराला
महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी संसार निराला
दुनिया की तस्वीर बना दूँ
जो रंग कोई हो भरने वाला
महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी मैं संसार निराला
सतरंगी किरणें उतरेंगी
हर्ष का होगा नया उजाला
नए खग नए तरुवर होंगे
नया जग होगा मतवाला
महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी मैं संसार निराला
सांच झूठ का नाम न होगा
होगी नई रवि की ज्वाला
कोई अर्थ न दे पायेगी
अहंकार की अब मधुशाला
महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी मैं संसार निराला
करुण कथा तेरे विनाश की
कोई न होगा सुनने वाला
विष का सृजन बहुत हो चुका
भर जाने दो अमृत प्याला
महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी मैं संसार निराला
नयी सुबह और नए जगत का
अवसर नहीं अब टलने वाला
फ़िर झूम कर नाचे गाएगा
मधुर- मधुर बांसुरी वाला
महाप्रलय से भयभीत न होना
रच दूंगी मैं संसार निराला
रच दूंगी मैं संसार निराला .... सच में निरालापन है चयन एवं प्रस्तुति में भी
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचनायें
अनुपम प्रस्तुति....आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं