शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

हिंदी हैं हम … वतन है हिन्दुस्तां



हिंदी हैं हम … वतन है हिन्दुस्तां हमारा  .... फ़ख्र होता है यह कहते हुए।  है न ? गंगा की पावन लहरों जैसी हिंदी को शुद्ध शुद्ध बोलकर उतना ही गर्व महसूस होता है,जितना गंगा को माँ कहते हुए 
क्योंकि   हिंदी देश की पहचान है। भारतीय संस्कृति की विश्व में पहचान कराने वाली मातृभाषा हिंदी ही है। 
आज भी कई कलमकार ऐसे हैं, जिन्हें पढ़ना आवश्यक है, उनकी कृति को बीज की तरह लगाना ज़रूरी है - 


मरुथल मरुथल फूल खिलाना होगा  


पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा
काँटों को भी हार बनाना होगा !

चाहे जितनी हों बाधाएँ
मंजिल मिल-मिल कर खो जाये,
अंगारों से द्वार सजाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

मुस्कानों का भ्रम न पालें
महा रुदन का अमृत ढालें
मरुथल मरुथल फूल खिलाना होगा  
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

सुख भरमाता आया जग को
छलता आया है हर पग को,
 दुःख का उर को गरल पिलाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

सच से आँखें मूंदे बैठे
अंधों बहरों को इस जग में
शंखनाद का रोर सुनाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

सुख की बात करें क्या उनसे
दुःख की जो चादर ओढ़े हैं,
करुणा का इक राग बहाना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !

तमस छा रहा हो जब जग में
अंधकार खड़ा हो मग में,
ज्योति पर अधिकार जताना होगा
पीड़ा को श्रृंगार बनाना होगा !


समय जो दिखता तो


समय जो दिखता तो 
मैं भी देख पाती समयांतर..... 
संभवतः आदम के साथ सेव खाते हुए 
या फिर प्रलय प्रवाह में बहती होती 
छोटी सी डोंगी में मनु के साथ
एक और सृष्टि सृजन  के लिए...... 
समय जो दिखता तो 
मैं हो जाती समकेंद्रिक 
समयनिष्ठ हो करती नाभिकीय विखंडन 
सूरज की तरह देती अनवरत उष्मा 
समय सारिणी को परे हटाकर 
एक सुन्दर जीवन जीते सभी........ 
समय जो दिखता  तो 
मैं बन जाती समदर्शी 
देख पाती गेंहूँ गुलाब की उदारता 
सभी पेट भरे होते सभी ह्रदय खिले होते 
और गलबहियां डाले दोनों गाते 
सबों के लिए समानता का गीत .............
समय जो दिखता तो 
मैं भी हो जाती समसामयिक 
कल की रस्सी पकड़ कल पर कूदने वालों को 
खीँच लेती आज में अपनी समस्त उर्जा से 
जिससे हो जाता सामूहिक समुदय.........
समय जो दिखता तो 
मैं ही समय हो जाती .

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुतियाँ , अमृता तन्मय जी को पढ़ना आह्लादकारी होता है .

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  2. दोनों ही कवितायें उत्कृष्ट !!अनीता जी व अमृता जी को पढ़ना अपने आप में एक अनुभव है !सिर्फ अनुभूति ही नहीं बहुत कुछ सीखने को भी मिलता है !!सतत पढ़ती हूँ ...दोनों को !!

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  3. आभार। आपका चयन निर्विवाद होता है बस अपने समय लगता है कहीं आप भटक तो नहीं गई :)

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  4. फ़ख्र होता है, निश्चित तौर पर जब आप जैसा संकल्पग लेकर कोई बढ़ाता है पहला कदम ....

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