हिंदी हमारी मातृभाषा है और माँ को भूलना हर सीख को भुला देना है। दो चार शब्द हम रोज लिखकर उसे ज़िंदा रख रहे हैं, पर उसकी गंभीरता पर सोच नहीं रहे। क्या हम प्रकृति कवि पंत, जयशंकर प्रसाद, निराला, प्रेमचंद, शरतचन्द्र, … के युग को पुनः स्थापित नहीं कर सकते ? नज़र दौड़ाने की देर है, प्रतिस्पर्धा से बाहर आकर खुले मन से देखिये - आज भी इनके रूप हैं, उदाहरण के लिए मैं कुछ लोगों को धीरे-धीरे प्रस्तुत करुँगी - जिससे आप इंकार नहीं कर पाएँगे और स्वीकृति के साथ आपको इन जैसों के लिए लड़ाई लड़नी होगी कि इनकी रचनाओं को पाठ्य पुस्तक में रखा जाए और इसे आवश्यक किया जाए।
जो जिस कार्य के लिए बने हैं, उसे निभाना उनका कर्तव्य है, आपको विधाता ने यदि कलम दी है तो कलम की जय खुले मन से करें - निष्पक्ष !
कुछ कलम, जिनको पढ़ते हुए मैंने अक्सर सोचा है
नदी किनारे निर्जन में निर्जन सा बैठकर
सत्य कितनी सरलता से पास बैठा मिल जाता है
हवा की सुगबुगाहट भी
ध्यान नहीं भटकाती
वो सारे ख्याल ओस की मानिंद टपकते हैं
जिनके बगैर हम होकर भी नहीं …
धीरे-धीरे
स्पर्श | Expressions
धीरे - धीरे
दरक जाएंगी सम्बन्धों की दीवारें
प्यार रिश्ते और फूल बिखर जाएँगे
न धरती बचेगी न धात्री
कोशिका की देह में टूटने की आवाज
सुनो जरा गौर से
हताशा में नहीं लिखी गई यह कविता
मृत्यु में जीवन का बीज सुबक रहा अंखुआने को
अंतर्नाद में प्रलय-वीणा झंकृत हो रही
फिर से सृजन का भास्वर लेकर
धीरे - धीरे
सब कुछ बिहर जाएगा मेरे भाई
फिर भी बचे रहेंगे देह - गंध, स्वाद और जीवन - संगीत का आखिरी लय
तुम्हारे शेष रहने तक |
नव जीवनपथ
मै निकल पड़ा हूँ घर से , सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जो मिले सफ़र में छूट गए,पर साथ चल रही उनकी याद
अन्यमयस्क सा चला जा रहा, गुजर रहा निर्जन वन से
मेरे विषम विषाद सघन हो उठे, गए सब निर्मम बन के
आकुल- अंतर अगर न होता, मै कैसे निरंतर चल पाता
चिर- तृप्ति अगर हो अंतर्मन में,चलने का उत्प्रेरण खो जाता
तृप्ति के स्वर्णिम घट दिखलाकर , मुझको ना दो प्रलोभन
पल निमिष नियंत्रित आत्मबल से,सुखा डाले है अश्रु कण
तमिस्रमय जीवन पथ पर , तम हरती एक लघु किरण भी
डगमग में गति भर देते विश्वास ह्रदय का अणु भर भी
शत शत काँटों में उलझकर,उत्तरीय हो गए क्षत छिन्न
कदम बढ़ रहे सतत , काल के कपाल पर देखने को पदचिन्ह .
sunadar prabhaa ji
जवाब देंहटाएंसब कुछ बिहर जाएगा मेरे भाई
जवाब देंहटाएंफिर भी बचे रहेंगे देह - गंध, स्वाद और जीवन - संगीत का आखिरी लय
तुम्हारे शेष रहने तक................बहुत सुन्दर _/\_दी
दोनों सुंदर लिंक्स के साथ सारगर्भित प्रयास !बधाई एवं शुभकामनायें दी!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दी मेरी पंक्तियों को सम्मान देने के लिए . मै अभी भी मानता हूँ की वो युग फिर से लौटेगा
जवाब देंहटाएंवाह रश्मिजी ह्रदय तृप्त हो गया....इतनी सुन्दर रचनाएँ पढ़कर...
जवाब देंहटाएंजो मिले सफ़र में छूट गए,पर साथ चल रही उनकी याद .....बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत शुभारंभ एक नये अध्याय का ! दोनों ही रचनाएं एक से बढ़ कर एक हैं ! आभार आपका रश्मिप्रभा जी ! ब्लॉग साग़र की गहराई से ऐसे अनमोल मोतियों को चुन कर लाने के लिये !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन !
जवाब देंहटाएंइस ब्लाग को अनुसरण करने के लिये लिंक भी तो खोलिये ताकि छपने की सूचना मिलती रहे । वर्ड वेरिफिकेशन भी हटायें । उत्तम प्रयास ।
जवाब देंहटाएंहर युग की अपनी गाथा है
जवाब देंहटाएंयुग युग से बस जुड़ता जाता है
चुनने वाला मोती पाता है
बाकी तो सब आता जाता है ।
बेहतरीन संकलन ।
अरे वाह ! बहुत ही उत्कृष्ट
जवाब देंहटाएंरचनाओं का चयन एवं प्रस्तुति अति उत्तम
बधाई सहित शुभकामनायें
सादर
वाह दीदी आप तो कमाल ही करती है
जवाब देंहटाएंकहाँ से लाती हैं इतनी सृजनात्मकता---
सादर
आप यहाँ बकाया दिशा-निर्देश दे रहे हैं। मैंने इस क्षेत्र के बारे में एक खोज की और पहचाना कि बहुत संभावना है कि बहुमत आपके वेब पेज से सहमत होगा।
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